फरवरी माह सभी के लिए काफी उम्मीदों भरा रहता है जिसमें हर मंत्रालय, विभाग एवं आम नागरिक को सरकार से बहुत सारी अपेक्षाएं रहती हैं| हर वर्ष केन्द्र सरकार सभी क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए आगामी वर्ष के लिए धन आवंटित करती है| सरकार द्वारा बजट भाषण एवं अन्य स्त्रोतों के माध्यम से आंकड़ों सहित यह बताया जाता है कि वे हम-आप सभी की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितनी संजीदा हैं|
सवाल यह है कि बावजूद इसके फिर भी सेवाएं क्यों बेहतर नहीं हो पा रहीं हैं? क्या आपने कभी इन बजट आंकड़ों के पीछे की हक़ीकत की तह में जाने की कोशिश की है?
इन्हीं सब चीजों को सरलता से आप तक पहुँचाने के लिए अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव संस्था सरकार की प्रमुख केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं के आवंटन और खर्च का विश्लेषण करती है| इस दस्तावेज को बजट ब्रीफ कहा जाता है जिसे सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर तैयार किया जाता है|
आईये शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्रों की योजनाओं का उदाहरण लेते हुए इनके आकंड़ों के पीछे की कहानी को समझने की कोशिश करते हैं|
शिक्षा : समग्र शिक्षा
अप्रैल 2018 में, भारत सरकार ने स्कूल शिक्षा के लिए समग्र शिक्षा योजना का आरम्भ किया, जिसका उद्देश्य पूर्व-विद्यालय से वरिष्ठ माध्यमिक कक्षाओं तक समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है। इस योजना में तीन योजनाओं सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षक शिक्षा को सम्मिलित किया गया है|
केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए समग्र शिक्षा के लिए 36322 करोड़ रूपए आवंटित किये हैं जोकि तीनों योजनाओं पिछले वित्तीय वर्ष के कुल आवंटन का 18 प्रतिशत अधिक है|
“गुणवत्ता” से संबंधित कुछ प्रमुख हस्तक्षेपों में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सीखने का आकलन, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) और डिजिटल पहल, सीखने के कार्यक्रम बढ़ाना, पुस्तकालयों को मजबूत करना और प्री-नर्सरी स्तर के लिए सहयोग शामिल हैं। केरल ने गुणवत्ता के हस्तक्षेप के लिए उच्चतम अनुपात 40 प्रतिशत आवंटित किया जबकि पश्चिम बंगाल (14 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (14 प्रतिशत), और बिहार (10 प्रतिशत) इसमें सबसे कम था। इससे मालूम चलता है कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए बहुत कम प्रयास किये जा रहे हैं|
वर्ष 2018-19 में हिमाचल प्रदेश राज्य प्रारंभिक शिक्षा के लिए प्रति छात्र आवंटन में सबसे 7,169 रूपए के साथ सबसे आगे रहा है लेकिन जब बच्चों के शैक्षणिक स्तर की बात आती है तो स्थिति विपरीत है| एनसीईआरटी के ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल प्रदेश हिंदी, गणित व पर्यावरण विज्ञान विषयों में तीसरी कक्षा में देशभर में 17वें स्थान पर है जबकि पांचवीं कक्षा में प्रदेश का 15वां तथा आठवीं कक्षा में 16वां स्थान है।
18 राज्यों का अध्ययन करने से मालूम चलता है कि केवल आंध्र प्रदेश ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ पर कक्षा X के छात्र गणित और साइंस में 50 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त कर सकें है|
स्वास्थ्य : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
वर्ष 2005 को शुरू हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, स्वास्थ्य देखभाल के लिए सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के उद्देश्य से भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम है। इसका प्राथमिक मिशन मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार और संक्रमणीय और गैर-संक्रमणीय बीमारियों को नियंत्रित करना है।
वर्ष 2019-20 के लिए सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 31,745 करोड़ आवंटित किये हैं जो पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 3 प्रतिशत अधिक है|
कैग की रिपोर्ट बताती है कि प्रजनन व बाल स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत आवंटित राशि पूरी तरह खर्च नहीं हो पा रही है। राज्यों द्वारा वर्ष 2011-12 में इस मद में 7,375 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाए थे, जो 2015-16 में बढ़कर 9,509 करोड़ हो गए। इसका मुख्य कारण मानव संसाधन एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों की लगातार कमी होना है। मार्च 2018 तक, आवश्यक कुल विशेषज्ञों में 82 प्रतिशत की कमी थी जो इस योजना को जमीनी स्तर पर कार्यान्वित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं| अतः इन सब कमियों की वजह से पैसा ऐसे ही पड़ा रहता है|
भारत बेड जैसी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है| भारत के नेशनल हेल्थ प्रोफाइल के अनुसार, 2015 में किसी भी सरकारी अस्पताल में एक बेड के मुकाबले मरीज़ों की औसत संख्या 1,833 थी, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 2,046 प्रति व्यक्ति हो गई|
स्वच्छता : स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)
स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत 2 अक्तूबर 2014 को प्रधानमंत्री द्वारा पूरे भारत को खुले से शौच मुक्त करने के उद्देश्य के साथ की गई थी|
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अंतर्गत स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के लिए केंद्र सरकार ने 2019-20 के लिए 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 31% कम है| इस बजट की कमी के कारण को हम इस तरह से भी देख सकते हैं कि केंद्र सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार यह योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के अंतिम पड़ाव पर है|
18 जनवरी 2019 तक, 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने खुद को बाह्य शौच मुक्त राज्य घोषित कर लिया है| जिसमें यह उपलब्धि हासिल करने वाले राज्यों में पहला स्थान सिक्किम और दूसरा हिमाचल प्रदेश राज्य को प्राप्त हुआ है|
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दिशानिर्देशों के अनुसार कुल आवंटन का 8 प्रतिशत सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाना है। इसमें से 3 प्रतिशत का उपयोग भारत सरकार के स्तर पर और 5 प्रतिशत का राज्य स्तर पर किया जाना है। इस निधि का उपयोग समाज में स्वच्छता सम्बन्धी जागरूकता फैलाने के लिए किया जाता है| गंभीर बात है की अकेले सिक्किम ने इसके अंतर्गत 10 प्रतिशत से अधिक राशि खर्च की है जबकि अन्य राज्यों ने इसकी तरफ ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा है| इससे समझ में आता है कि राज्यों के लिए उनकी पहली प्राथमिकता स्वच्छता संबंधी जागरूकता की जगह शौचालय निर्माण करना रहा है|
अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव बजट ब्रीफ्स के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने का काम करता है| अतः एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा और आपका कर्तव्य समाज के प्रति और भी बढ़ जाता है कि हम लोगों को जागरूक करें| ताकि आम नागरिक समझ पायें कि यह पैसा हम-आप सभी से टैक्स के माध्यम से होकर सरकार तक पहुँचता है| इसलिए हम सभी का दायित्व बनता कि हम सरकार में बैठे प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से जवाब मांगे कि आखिर क्यों पैसा समय पर नहीं मिलता और जब मिलता है तो उसका खर्चा समय पर सही तरीके से क्यों नहीं किया जाता? योजनायें तो अनेकों चलाई जाती हैं लेकिन उन्हें चलाने के लिए पर्याप्त अधिकारी क्यों नियुक्त नहीं हैं? तो ऐसे में सेवाएं आखिर कैसे बेहतर हो सकतीं हैं?
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